प्रबुद्ध भारत
न केवल भारत में ही बल्कि संपूर्ण पूरे संसार में प्रत्येक नागरिक ही समय के साथ साथ राजनीतिक दृष्टि से परिपक्व होता जा रहा है। और फिर भी यह भी सच है कि परिस्थितियों के प्रभाव से एक ओर तो इस तरह से परिपक्व होने के साथ ही दूसरी ओर कट्टर, दुराग्रही और अतिवादी या विवेकयुक्त, संवेदनशील, यथार्थवादी भी होता जा रहा है।
और यह परिपक्वता उसमें यथार्थ के प्रति जागरूकता के साथ उसे कट्टरता और दुराग्रहपूर्णता के प्रति सचेत भी कर बना रही है।
किन्तु दुर्भाग्य से, राजनीति का व्यवसाय करनेवाले लोग, जो किसी भी वर्ग या समुदाय से आते हों, उसे दिग्भ्रमित बनाए रखने का प्रयास करते रहते हैं। और यह भी सच है कि ऐसे लोग हर और प्रत्येक ही राजनीतिक दल में पाए जा सकते हैं। किन्तु लगता है कि राजनीतिक दृष्टि से विवेकयुक्त, संवेदनशील और यथार्थवादी प्रबुद्ध लोगों का एक ऐसा वर्ग भी अब उठ खड़ा हुआ है, जिसका इस प्रकार की राजनीति का व्यवसाय करने वाले सत्तालोलुप समूहों (या राजनीतिक दलों) से मोहभंग हो चुका है और वे अपने विवेक से देश में होनेवाले चुनावों में मनुष्यमात्र के राष्ट्रीय और वैश्विक हितों को ध्यान में रखकर मतदान करने लगे हैं। और इसलिए के यह देखा जा सकता है कि राजनीतिक गतिविधियों की समीक्षा करनेवाले अब निश्चयपूर्वक कुछ कह पाने में असमर्थ होने लगे हैं।
यहाँ प्रस्तुत लिंक इसी यथार्थ का सूचक है।
क्या यह संभव है कि किसी भी सामाजिक, धार्मिक या सांस्कृतिक समूह में हर कोई कट्टर, दुराग्रही और देश तथा संसार के राजनीतिक यथार्थ को देख पाने में असमर्थ हो? इसलिए यह प्रश्न कि क्या किसी भी वर्ग-विशेष का प्रत्येक ही व्यक्ति सामूहिक रूप से किसी विशेष उम्मीदवार या दल के पक्ष में मतदान करता है या नहीं करता है, अपने आपमें भ्रामक है।
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