Sunday, 30 October 2022

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A Screenshot from my Twitter Account --

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श्रीमद्भगवद्गीता -- 5/14,

प्रह्लादकृत नृसिंह-स्तुति -14,

श्वेताश्वतरोपनिषद् -- 1/2,

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अध्याय 1, श्लोक 2



This Screen-shot above of my twitter page prompted me to write this post.

Because of reasons unknown, This reminded me of three Sanskrit Stanzas from different  three sources.

From Shrimadbhadgita / Chapter 5,

Stanza 14, श्रीमद्भगवद्गीता -- अध्याय 5,

न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः।।

न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते।।१४।।

The next is from :

Srimdbhagvat Section 7, Chapter 9 --

Prahladkrit nrsingh-stotram,

श्रीमद्भागवते महापुराणे सप्तमस्कन्धे नवमेऽध्याये प्रह्लादकृत-नृसिंहस्तोत्रम्

माया मनः सृजति कर्ममयं बलीयः 

कालेन चोदितगुणानुमतेन पुंसः।।

छन्दोमयं यदजयार्पितषोडशारं

संसारचक्रमज कोऽतितरेत्त्वदन्यः।।१४।।

And the last one is from the Shwtashvara -  Upanishad -1/3,

श्वेताश्वतरोपनिषद्,

अध्याय १,

मंत्र / श्लोक ३ --

कालः स्वभावः नियतिर्यदृच्छा

भूतानि योनिः पुरुष इति चिन्त्या।।

संयोग एषां न त्वात्मभावा-

दात्माप्यनीशः सुखदुःखहेतोः।।

(This should be read with reference to and in the context of the earlier one :

श्वेताश्वतरोपनिषद्

प्रथमोऽध्यायः

हरिः ॐ ब्रह्मवादिनो वदन्ति --

किं कारणं ब्रह्म कुतः स्म जाता

जीवाम केन क्व च सम्प्रतिष्ठा।। 

अधिष्ठिताः केन सुखेतरेषु

वर्तामहे ब्रह्मविदो वरिष्ठाम्।।१।।)

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This post elaborates the answer that I gave in my tweet to him.

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