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Friday, 24 June 2022

तुम कौन?

कविता : 

होना, जानना, करना और मन

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तुम मन हो, 

या सोचते हो, 

कि तुम मन हो! 

या मन ही सोचता है, 

कि मैं मन हूँ, 

यदि मन सोचता है, 

कि वह सोचता है,

तो उसे सोचने दो! 

यदि मन कहता है,

कि वह कहता है,

तो उसे कहने दो!

क्या मन सुनता भी है? 

क्या तुम सोच सकते हो? 

क्या तुम कह सकते हो?

क्या तुम सुन सकते हो? 

सोचने-कहने के लिए, 

कुछ किया जाना होता है। 

सुनने के लिए,

क्या कुछ किया जाना होता है?

सोचना-कहना कर्म है,

सोचने-कहनेवाला कर्ता है!

क्या सुनना भी कर्म है?

या है सिर्फ होना! 

जैसे नदी होती है,

धूप और छाया होती है!

सुख और दुःख होते हैं!

कर्म और कर्ता होता है!

कार्य और क्रिया होती है!

क्या वह, जो कि होता है,

जानता है?

कि मैं हो रहा हूँ? 

तुम जानते हो, 

या नहीं जानते, 

लेकिन तुम हो बस,

यह जानना भी तुम हो!

यह जानना, न कर्म है, न कर्ता,

यह जानना, होना है, न कि करना!

यह होना, जानना है, न कि करना!

***