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Friday, 8 July 2022

अर्ज़ किया है!

संस्कृत, अरबी, उर्दू, हिन्दी, अंग्रेजी 

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शायर अपनी शायरी की शुरुआत में कहता है :

"अर्ज़ किया है!"

अगर इसे संस्कृत में निवेदन करता, तो कहता :

अर्चितमस्ति -- अर्चयामि, 

अगर इसे हिन्दी में कहता, तो कहता :

अर्चना करता हूँ, 

अगर अंग्रेजी भाषा में कहता, तो कहता :

It's urgent / urged.

ऋषि कहता है :

ऋ वर्ण का विस्तार  ऋजु, ऋक् में होता है। भाषा-शास्त्र, स्वर और वर्ण के बोध से उत्पन्न विज्ञान है। 

ऋच् प्रत्यय से ऋक्, ऋच्, ऋज् का आगम होता है। 

ऋक् से ऋग् ऋग्वेद, ऋच् से ऋचा / अर्च, और ऋज् से ऋजु, अर्जन, अर्जुन की व्युत्पत्ति होती है। 

संस्कृत भाषा इसलिए अन्य सभी व्युत्पन्न भाषाओं जैसी कोई व्युत्पन्न भाषा नहीं है। संस्कृत भाषा काल-निरपेक्ष वास्तविकता है, न कि कोई नई या पुरानी भाषा। इसलिए संस्कृत भाषा अन्य भाषाओं की जननी है, ऐसा कहना भी पूर्णतया सत्य नहीं है। 

फिर भी सभी भाषाएँ संस्कृत से इस रूप में अवश्य ही संबद्ध हैं क्योंकि किसी भी भाषा का जन्म स्वरों और वर्णों के प्रयोग से ही होता है। इसलिए भिन्न भिन्न भाषाओं में शब्दों का उद्गम कहाँ से हुआ, यह तो खोजा जा सकता है, किन्तु भिन्न भिन्न भाषाओं का व्याकरण तो उन विभिन्न समुदायों की विशेष परिस्थितियों, मानसिक प्रवृत्तियों आदि से प्रभावित अवश्य हुआ।

भाषा-शास्त्र या भाषा-विज्ञान की दृष्टि से संस्कृत भाषा में, इसी प्रक्रिया का अध्ययन होता है। अन्य सभी भाषाओं के व्याकरण का आधार उनके पारंपरिक प्रयोग का तरीका होता है, जबकि संस्कृत के व्याकरण का आधार स्वरों और वर्णों से कोई शब्द कैसे बन सकता है, तथा उस शब्द का संज्ञा, सर्वनाम, क्रियापद, विभक्ति तथा अव्यय, प्रत्यय आदि में प्रयोग कैसे करने पर वह किस भाव का द्योतक होगा, इस पर निर्भर होता है।

शायद इसीलिए संस्कृत भाषा का अध्ययन करनेवाला अनायास ही लगभग सभी भाषाओं की मौलिक संरचना को सरलता से समझ सकता है। लिपि-शास्त्र और ध्वनि-शास्त्र की भूमिका भी इस संबंध में महत्वपूर्ण है और संस्कृत भाषा की संरचना में इस पर भी पर्याप्त ध्यान दिया गया है यह भी स्वीकार करना होगा। 

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