मंत्र ५
तदेजति तन्नैजति तद् दूरे तद्वन्तिके।।
तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः।।
The Four Fold Mind :
मन के चार मुख (चतुरानन)
Active, In-active, Passive, Impassive.
सक्रिय (परस्मैपदी), निष्क्रिय (आत्मनेपदी) समरस (उभयपदी), असंसक्त,
इसके तुल्य मानसिक स्थितियाँ क्रमशः इस प्रकार हैं --
जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति / सविकल्प समाधि, निर्विकल्प समाधि।
निर्विकल्प समाधि भी केवल निर्विकल्प (सबीज) या सहज निर्विकल्प (निर्बीज) हो सकती है।
निर्विकल्प ही तुरीय है। सहज निर्विकल्प ही असंसक्त अर्थात् तुरीयातीत Impassive है, जिसका वर्णन इस मंत्र में किया गया है।
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तत् एजति तत् न एजति तत् दूरे तत् उ अन्तिके।
तत् अन्तरस्य सर्वस्य तत् उ सर्वस्य अस्य बाह्यतः।।
यहाँ सर्व / इदम् सर्वनाम का प्रयोग एकवचन में दृष्टव्य है। अर्थात् 'सब' का प्रयोग बहुवचन में नहीं है; जैसा कि 'सब लोग' में है। चूँकि काल / समय भी सब (Total / Totality) के ही अन्तर्गत है इसलिए उक्त मंत्र काल के सन्दर्भ में भी सुसंगत है। --
अर्थ वह गतिशील है, वह गतिशून्य है, वह दूर है, और वह भीतर है। वह इस सब के (अस्य सर्वस्य) के भीतर और बाहर भी है।
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