Wednesday, 4 January 2023

कस्य स्विद्धनम् ।।

मंत्र - १

ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम्।।१।।

अन्वय : ईशा वास्यम् इदम् सर्वम् यत् किम् च जगत्यां जगत्। तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः मा गृधः कस्य स्वित् धनम्।।

सरल अर्थ :

इस जगती (अस्तित्व) में असंख्य जगत् हैं। प्रत्येक मनुष्य का अपना व्यक्तिगत विश्व होता है, और ऐसे असंख्य व्यक्ति अपने अपने विश्व में अपना जीवन जीते हैं। कोई भी किसी दूसरे के जीवन के बारे में जैसा अनुमान लगाता है, वह उसकी अपनी बुद्धि, संस्कार और स्मृति पर आधारित होता है।  शुद्ध भौतिक दृष्टि से यद्यपि सभी व्यक्ति उन्हीं पाँच मूल महाभूतों से बने होते हैं, जिनसे कि यह अस्तित्व बना है। अस्तित्व भी पुनः काल और स्थान के अन्तर्गत है। इसी प्रकार काल और स्थान भी अस्तित्व के अन्तर्गत हैं। काल को ईश्वर-तुल्य समझा जा सकता है, जैसा कि पिछले पोस्ट में कहा गया था। ईश्वर के बारे में यद्यपि कोई किसी प्रकार का दावा नहीं कर सकता, किन्तु काल के बारे में ऐसी कोई दुविधा नहीं है। क्या कोई है जो काल की सत्यता पर सन्देह करता हो! काल केवल मान्यता है या विज्ञान-सम्मत तथ्य भी है! स्पष्ट है कि यद्यपि हम काल के स्वरूप के बारे में ठीक ठीक कुछ नहीं जानते, और वैज्ञानिक भी इस बारे में काल के स्वरूप से अंतिम रूप से कुछ तय नहीं कर पा रहे हैं, किन्तु यह तो सभी स्वीकार करते हैं कि काल ही अस्तित्व की प्रत्येक ही छोटी से छोटी से लेकर बड़ी से बड़ी घटना को भी परिभाषित, संचालित और नियंत्रित करता है। हम किसी हद तक काल के लक्षणों का अवलोकन और अनुमान कर तदनुसार अपने कार्य सफलतापूर्वक संपन्न कर सकते हैं, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि हमने काल को जीत लिया है।

मंत्रार्थ : यह सम्पूर्ण अस्तित्व काल के ही द्वारा शासित उसका ही व्यक्त प्रकार है। यही हमारा वास्तविक धन है, जिसे हम न तो उत्पन्न कर सकते हैं, न संग्रह कर सकते हैं, और जिसे न ही व्यय कर सकते हैं।  फिर भी काल का समुचित उपभोग तो कर ही सकते हैं। अर्थात् यह ध्यान में रखकर कि व्यतीत काल पुनः नहीं आ सकता। इसी प्रकार आनेवाले भावी के लिए हम कोई योजना तो बना सकते हैं, किन्तु भविष्य का केवल अनुमान ही किया जा सकता है, उसे ठीक ठीक जान पाना तो असंभव ही है। यदि कोई उसे जानता भी हो तो भी उसे बदल नहीं सकता, क्योंकि बदलने का मतलब यही हुआ कि उसके द्वारा जो जाना था, वह जानना ही मूलतः त्रुटिपूर्ण था। इसलिए कोई दैवज्ञ भी यद्यपि किसी भावी घटना की अक्षरशः ठीक भविष्यवाणी भी कर सकता है, फिर भी वह किसी भी उपाय से उसे बदलने का दावा नहीं कर सकता। यदि वह ऐसा दावा करता है, तो इससे यही सिद्ध होगा कि उसने भविष्य का जैसा अनुमान किया है, उस अनुमान में ही कोई त्रुटि थी।

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