संज्ञा और छाया : धर्म और संस्कृति
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परिधि और क्षितिज की कथा सुबह लिखी थी।
फिर लगा, कि क्या यह कथा केवल एक बौद्धिक-काल्पनिक मनोरंजन है, या इसमें अनायास ही इससे भी अधिक कुछ गूढ रहस्य या तात्पर्य व्यक्त हुआ है!
श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ४ का यह श्लोक याद आया :
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।।
विवस्वान मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्।।१।।
वैवस्वान् / वैवस्वत् वर्तमान युग के मनु का नाम है।
स्कन्द-पुराण के अनुसार :
धाता मित्रोऽर्यमा शक्रो वरुणश्चांशुरेव च ।
भगो विवस्न्वान् पूषा च सविता दशमस्तथा।।
एकादशस्तथा त्वष्टा विष्णुर्द्वादश उच्यते।
जघन्यजः स सर्वेषामादित्यानां गुणाधिकः।।
(माहेश्वर-कुमारिका खण्ड, कलाप ग्राम निवासी सुतनु द्वारा नारदजी के जटिल प्रश्नों का समाधान)
संज्ञा का तात्पर्य है चेतना, जो कि भूतमात्र में, -सभी जीवों में जीवन है -- श्रीमद्भगवद्गीता -अध्याय १०, श्लोक २२ के अनुसार, "भूतानामस्मि चेतना।।"
किन्तु उसी चेतना consciousness की छाया / shadow है -- "चेतनता" - material-consciousness...।
संज्ञा, विश्वकर्मा की पुत्री थी, जिसका विवाह भगवान् सूर्य से हुआ। किन्तु वह सूर्य के प्रचंड ताप से व्याकुल हो उठी, उसने अपने जैसी एक छायाप्रतिमा निर्मित की, और भगवान् सूर्य से उसे हुई सन्तानों - यम, यमुना और मनु को उसे सौंपकर उसने छाया से कहा - तुम यह रहस्य किसी पर प्रकट न करना। तब छाया ने पूछा, कि उसके प्राणों पर संकट आ खड़ा हो क्या तब भी? संज्ञा बोली : उस स्थिति में तुम अवश्य ही कह देना। संज्ञा तब पिता के घर लौट आई। उसे अकेले आया देख, विश्वकर्मा ने पूछा : सूर्यदेव कहाँ है? तब उसने पूरी कहानी उन्हें सुना दी। विश्वकर्मा बोले : स्त्री का घर वहीं होता है, जहाँ वह अपने पति के साथ रहती है, तुम वहाँ लौट जाओ। उस समय तो संज्ञा वहाँ से तो लौट गई किन्तु सूर्यदेव के पास न जाकर घोर वन में चली गई। और वहाँ तपस्या करने लगी। उसने अश्विनी (घोड़ी) का रूप धारण कर लिया, और चरती रही। भगवान् सूर्य इस सबसे अनजान थे और छाया को ही संज्ञा समझ रहे थे। छाया से उन्हें तीन सन्तानें भगवान् शनि, तापी नामक नदी और सावर्णि मनु (एमानुएल) प्राप्त हुए। छाया अपनी सन्तानों से तो प्यार दुलार करती किन्तु यम, यमुना और मनु की उपेक्षा करती। एक दिन यम ने क्रोध के वश में उस पर पैर का प्रहार किया, तो वह यम को शाप देने लगी। यम पिता के पास पहुँचे और कहा : लगता है, यह हमारी माता नहीं है, क्योंकि कोई माता कभी सन्तान को शाप नहीं देती। तब सूर्यदेव ने छाया से पूछा -- सच सच बता तू कौन है? तब छाया ने उन्हें सब कुछ स्पष्ट कह दिया। भगवान् सूर्य तब संज्ञा को खोजते हुए जब विश्वकर्मा के पास जा पहुँचे, तो उन्हें पता चला, कि संज्ञा वहाँ से तत्काल ही कहीं चली गई थी। तब वे उसे खोजते हुए सर्वत्र विचरण करते रहे और अन्ततः उसे घोर वन (मन नामक महा-अरण्य) में घोड़ी के रूप में चरते देखा तब उन्होंने भी अश्व का रूप धारण कर लिया। वहाँ उनके यमक -दो पुत्र हुए। उन्हें अश्विनौ (equinox) कहा जाता है।यही भौतिक सृष्टि का रहस्य है।
इन्हीं अश्विनौ या नासत्यौ का दूसरा रूप संपाती और जटायु के रूप में रामायण में पाया जाता है। जटायु विषुव (equinox) है, जबकि संपाती कर्क और मकर संक्रांति (solstice) है।
चूँकि इस दृष्टि से भी यम और यमुना भाई-बहन हैं, और यम ही सार्वभौम धर्म ( महर्षि पातञ्जल-योगदर्शन में वर्णित सार्वभौम महाव्रत) है, जबकि यमुना विश्व-संस्कृति है।
इस प्रकार से विवेचना करने पर लगा कि यह कथा संयोग-मात्र नहीं है।
यहाँ इतना ही।
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