Wednesday, 7 September 2022

काशीतलवाहिनी गङ्गा?

काशीतलवाहिनी गङ्गा?

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यह एक प्रहेलिका (पहेली) है, जिसमें प्रश्न भी है और उसका उत्तर भी है।

प्रश्न है :

का शीतलवाहिनी गङ्गा?

उत्तर है :

काशी-तलवाहिनी गङ्गा।। 

प्रश्न है : शीतलजल के प्रवाह से युक्त गङ्गा क्या है?

उत्तर है : काशी में जिसका प्रवाह होता है, वह है गङ्गा।

काशी के विषय में एक वर्णन इस प्रकार से है :

काश्यां तु मरणाद्मुक्तिः जननात्कमलालये।। 

दर्शनादभ्रसदृशीः स्मरणादरुणाचले।।

इसका सामान्य अर्थ है :

काशी (काञ्ची) में मृत्यु होने से मुक्ति होती है, हृदयरूपी कमलालय में जन्म होने से भी, चिदम्बरम् के दर्शन करने से मुक्ति होती है, और इसी प्रकार अरुणाचल के स्मरण से भी।

धरती पर ये चारों स्थान भौगोलिक रूप से क्रमशः वाराणसी, पुष्कर, चिदम्बरम् और अरुणाचल (तिरुवन्नामलै) हैं।

इनका गूढ आशय यह है :

काश (हृदयरूपी आकाश) में जिसकी मृत्यु होती है, उसके प्राण हृदय में अवस्थित परमात्मा शिव में निमग्न हो जाते हैं, जो कि मुक्ति है। इसी हृदयरूपी कमल में जिसे आत्मा का साक्षात्कार हो जाता है, उसकी भी मुक्ति हो जाति है। चिदम्बर अर्थात् चित्त  रूपी चेतना के अम्बर (आवरण) से जो चैतन्य आवरित है, उस चैतन्य के दर्शन जिसे हो जाते हैं उसकी भी मुक्ति हो जाती है, तथा अरुणाचल शिव (जहाँ आत्मा का भान सदैव अहं-अहं के रूप में अनायास, नित्य, अनवरत स्फुरित होता रहता है), उसके स्मरण होने से भी मुक्ति हो जाती है। 

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अयोध्या मथुरा माया काशी-काञ्ची अवन्तिका।।

पुरी द्वारावती चैव  सप्तैते मोक्षदायिनी।।

अयोध्या, मथुरा / मधुरा / मदुरई, माया मय दानव द्वारा निर्मित नगरी, काशी-काञ्ची -- उत्तर में काशी और दक्षिण में काञ्चीपुरम्, अवन्तिका अर्थात् उज्जयिनी, पुरी अर्थात् श्रीजगन्नाथपुरी और द्वारावती अर्थात् द्वारका ये सातों स्थल स्थान प्रलयकाल में भी नष्ट नहीं होते।

मय दानव / मयासुर का संबंध माया सभ्यता (मेक्सिको / मख-शिखः) से है।  

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