शान्तिपाठ
ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः।
शं नो भवत्वर्यमा।
शं न इन्द्रो बृहस्पतिः।
शं नो विष्णुरुरुक्रमः।
नमो ब्रह्मणे।
नमस्ते वायो।
त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि।
ऋतं वदिष्यामि।
सत्यं वदिष्यामि।
तन्मामवतु।
तद्वक्तारमवतु।
अवतु माम्।
अवतु वक्तारम्।
ॐ शान्तिः !शान्तिः !!शान्तिः!!!
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मित्र (सूर्य) हमें शान्ति प्रदान करें, और वरुण (समुद्र तथा जल) हमें शान्ति प्रदान करें। सूर्य और वरुण अधिभौतिक इन्द्रियगम्य स्थूल लोकों के लिए प्रत्यक्ष हैं। अर्यमा (सूर्य, जो पितृलोक का शासन करते हैं) हमें शान्ति प्रदान करें। पितृलोक वह लोक है, जहाँ भूलोक में मृत्यु हो जाने के बाद जीव कुछ समय तक वास किया करते हैं, पितरों को इस प्रकार देवता-विशेष माना जाता है, जिनका अस्तित्व आधिदैविक एवं आधिमानसिक दोनों ही स्तरों पर माना जाता है। देवताओं के शासनकर्ता इन्द्र, - हमारे लिए शान्ति प्रदान करें। इन्द्र और बृहस्पति देवताओं के शासक एवं गुरु भी हैं।
ॐ
गणानां त्वा गणपतये हवामहे
कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम्।।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत
आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम्।।०२३।।
(ऋग्वेद मण्डल २)
ॐ गं गणपतये नमः ।।
गणपति ही इन्द्र, बृहस्पति, सूर्य, विष्णु भी हैं, क्योंकि एकमेव तत् सत् ब्रह्म अनेक उपाधियों के माध्यम से युक्त होकर विभिन्न प्रकार से जाना जाता है।
विष्णु अर्थात् उरुक्रम के रूप में जिस परमात्मा ने तीनों लोकों को तीन क्रमिक चरणों में क्रमशः व्याप्त किया है, वही विष्णु, वे परब्रह्म परमात्मा हमें शान्ति प्रदान करें।
उस ब्रह्म के लिए नमस्कार। हे वायुदेवता! आपको नमस्कार!! चूँकि वायु स्थूल जगत् में तो सर्वत्र गतिशील हैं, सूक्ष्म रूप से भी वे ही प्राणों की भी गति हैं और उस रूप में भी वे देवता हैं, जो कि भूलोक (स्थूल भौतिक) और भुवर्लोक (संसार रूपी जीवन) में सतत संचार करते हैं। वायुदेवता! आप प्रत्यक्ष ब्रह्म हैं। आपको ही (मैं) प्रत्यक्ष ब्रह्म कहूँगा। मैं वाणी से परे के सत्य को अर्थात् ऋत् को वाणी से कहूँगा। (मैं) व्यावहारिक रूप से जिसे सत्य कहा जाता है, उसे ही कहूँगा। वह ब्रह्म मेरी रक्षा करे। वह वाणी के माध्यम से सत्य को कहने वाले वक्ता की रक्षा करे। वह मेरी रक्षा करे। वह वक्ता की रक्षा करे।
ॐ शान्तिः! शान्तिः!! शान्तिः!!
इस प्रकार स्थूल, सूक्ष्म और कारण तीनों ही प्रकारों से सर्वत्र शान्ति व्याप्त हो।
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