अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः।।
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चिन्ता विचार है, और विचार चिन्ता। चिन्ता चिन्तन है, चिन्तन चिन्ता। विचार के अभाव में चिन्तन नहीं हो सकता, और न ही चिन्तन के अभाव में चिन्ता । विचार, चिन्तन, चिन्ता और मन एक ही गतिविधि के अलग अलग चार नाम हैं। गतिविधि एक ही है। मन गतिविधि है, और गतिविधि मन है। फिर वह क्या है जो विचार, चिन्ता, चिन्तन और मन के एक दूसरे से भिन्न होने का आभास उत्पन्न करता है?
विचार, चिन्ता, चिन्तन और मन, मूलतः गतिविधि के ही भिन्न प्रतीत होनेवाले चार प्रकार हैं, और चेतना ही उनकी पृष्ठभूमि होती है। चेतना की इस पृष्ठभूमि की निजता और नित्यता की सत्यता तो स्वयंसिद्ध है ही, किन्तु विचार, चिन्ता, चिन्तन और मन उस पृष्ठभूमि पर विषय, विषयी के बीच आभासी विभाजन आरोपित कर देता है। चेतनारूपी इस पृष्ठभूमि की नित्यता और निजता एक अकाट्य और असंदिग्ध, निर्विवाद तथ्य है, और यही तथ्य विषयी के निरंतर विद्यमान होने के भ्रम को जन्म देता है। मूलतः विषयी और विषय दोनों ही उस एक ही गतिविधि के दो पक्ष हैं जो विचार, चिन्ता, चिन्तन और मन के रूप में चेतना से भिन्न की तरह प्रतीत और अभिव्यक्त होती है।
विचार, चिन्ता, चिन्तन और मन विषय-आधारित गतिविधि होते हैं, अर्थात् विषय के अभाव में नहीं हो सकते। जागृत तथा स्वप्न ऐसी ही गतिविधियाँ हैं। किन्तु सुषुप्ति में तो विषय और विषयी तथा उनके बीच का विभाजन भी कहाँ होता है?
पातञ्जल योग-सूत्र में चेतना की इस पृष्ठभूमि को ही दृष्टा तथा विचार, चिन्ता, चिन्तन और मन के रूपों में हो रही गतिविधि को चित्त-वृत्ति कहा गया है। वृत्तियों का वर्गीकरण पाँच प्रकारों में किया गया है और चित्तवृत्ति के निरोध को ही योग कहा गया है। इस प्रकार चित्तवृत्ति के निरुद्ध होने की अवस्था ही योग है। इस अवस्था में दृष्टा (अपने) स्वरूप में स्थित होता है। दृष्टा जब जब इस स्थिति से विचलित हो जाता है, विचार, चिन्ता, चिन्तन तथा मन रूपी गतिविधि प्रारंभ हो जाती है। यही चित्तवृत्ति है। पुनः निद्रा अर्थात् सुषुप्ति को भी चित्तवृत्ति कहा गया है।
इन चित्तवृत्तियों के पाँच प्रकारों को इस प्रकार से वर्गीकृत किया गया है :
प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और स्मृति। पुनः ये सभी क्लिष्ट या अक्लिष्ट हो सकती हैं।
प्रमाण का अर्थ है : प्रतीति या मूल्यांकन (evaluation),
विपर्यय का अर्थ है : त्रुटिपूर्ण प्रतीति या मूल्यांकन (distortion),
विकल्प का अर्थ है : एक प्रतीति को किसी दूसरी प्रतीति से प्रतिस्थापित / replace कर दिया जाना,
निद्रा का अर्थ है : अभाव-प्रत्ययात्मक गतिविधि / अभावात्मक वृत्ति, जब विचार, चिन्ता, चिन्तन अर्थात् -- मन की गतिविधि, आनन्द के भोग में लीन होने से विषय और विषयी का भेद भी तात्कालिक रूप से विलीन हो जाता है। निद्रा में विषय-शून्यता की प्रतीति होती है जिसे अभाव-प्रत्यय कहा जाता है।
और अन्तिम है स्मृति : अर्थात् विचार, चिन्ता, चिन्तन या मन की वह गतिविधि है, जब किसी अनुभूत विषय की पुनरावृत्ति (प्रतीत) होती है।
इन समस्त वृत्तियों का निरोध अभ्यास एवं वैराग्य की सहायता से होता है।
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