इस मोड़ से जाते हैं !
--
हिन्दुत्व : दिशा और दशा
------------©-------------
योऽपि सेवते मद्यं स विनश्यत्येवेति निश्चयः।।
अपि यो न सेवते मूढो सोऽपि विनश्यति तथा ।।
--
जो मनुष्य मदिरापान करता है, उसका विनाश अवश्यम्भावी है। और जो मूढ मदिरापान नहीं करता, उसका भी विनाश अवश्य ही होता है।
तात्पर्य यह कि विवेकी अथवा मूढ, जो भी मदिरापान करता है, नष्ट हो जाता है। अतः विवेकवान पुरुष मदिरापान नहीं करता।
वर्तमान समय में जो हिन्दुत्व के पक्ष में हैं, और जो हिन्दुत्व के विरोधी हैं, उन दोनों ही पर यह उदाहरण लागू होता है।
क्योंकि हिन्दुत्व कोई --
राजनीतिक विचारधारा / Political Ideology
कदापि नहीं है, और न इसे कभी ऐसा बनाया जा सकता है।
हिन्दुत्व कोई पंथ (faith, religion) भी नहीं है।
हिन्दुत्व कोई भाषा तो कदापि नहीं है।
हिन्दुत्व एक सामाजिक, साँस्कृतिक और यहाँ तक कि क्षेत्रीय या राष्ट्रीय पहचान भी अवश्य हो सकता है, किन्तु जैसे ही इसे एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में प्रस्तुत और स्वीकार कर लिया जाता है, वैसे ही यह इसके पक्षधरों और विरोधियों दोनों ही के लिए गले की ऐसी हड्डी बन जाता है जिसे न ही उगला जा सकता है और न ही निगला जा सकता है। और यह कोई मत या विचार नहीं, भारत के समूचे अतीत का अत्यन्त कटु और जीता जागता तथ्य है।
फिर भी जो लोग हिन्दुत्व को भारतवर्ष की राष्ट्रीय पहचान की तरह स्थापित करना चाहते हैं, उन्हें पहले तो इसके लिए यह तय करना, यह सुनिश्चित कर लेना होगा कि जैसे कोई राष्ट्र इस्लामी, कैथोलिक, बौद्ध, ज्यू, क्रिश्चियन या फिर नास्तिक (कम्युनिस्ट ) भी हो सकता है, उसी तरह भारत या भारतवर्ष के "हिन्दू राष्ट्र" होने पर क्या आपत्ति की जा सकती है?
दूसरी ओर, यह भी अवश्य ही, इतना ही एक और, अत्यन्त ही कठोर सत्य है, कि जैसे ही - (और यदि), भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित किया जाता है, वे सारी हिन्दुत्व-विरोधी राजनीतिक विचारधाराएँ एक-जुट हो जाती हैं, जो स्वयं को धर्म के नाम पर, और धार्मिक स्वतंत्रता के बहाने उस कवच में सुरक्षित कर लेती हैं। और न केवल विभिन्न भिन्न भिन्न मतों के मतावलम्बी ही, बल्कि साम्यवाद के पैरोकार भी हिन्दू चेतना पर पूरी शक्ति से आक्रमण करने लगते हैं।
इसलिए न सिर्फ भारत, बल्कि पूरे विश्व के भी, न सिर्फ वर्तमान, बल्कि भविष्य के हित की दृष्टि से भी यह सर्वाधिक प्रासंगिक, अत्यन्त ही महत्वपूर्ण और विचारणीय प्रश्न भी है कि इस विषय में हम क्या करते हैं।
***
No comments:
Post a Comment