अपरा और परा विद्या
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सन्दर्भ : मुण्डकोपनिषद् १-१, ३-४-५,
शौनको ह वै महाशालो अङ्गिरसं विधिवदुपसन्नः पप्रच्छ। कस्मिन्नु भगवो विज्ञाते सर्वमिदं विज्ञातं भवति।।३।।
शौनक नामक प्रख्यात मुनि ने, जो कि किसी विशाल विद्यापीठ के प्रमुख थे, एक बार महर्षि अङ्गिरा / अङ्गिरस् के समीप पहुँच कर विधि के अनुसार उनसे दीक्षा प्राप्त की, और फिर यह प्रश्न पूछा :
(हे) भगवन्! वह कौन सा सत्य है, जिसे जान लिए जाने पर सब कुछ जान लिया जाता है?
तस्मै स होवाच। द्वे विद्ये वेदितव्ये इति ह स्म यद्ब्रह्मविदो वदन्ति परा चैवापरा च।।४।।
शौनक मुनि से महर्षि अङ्गिरा ने कहा :
जिनका वर्णन ब्रह्मवित् करते हैं, इस प्रकार की जानने योग्य दो विद्याएँ, प्रधानतः तो परा एवं अपरा यही दोनों हैं।
तत्रापरा ऋग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदोऽथर्ववेदः शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं छन्दो ज्योतिषमिति। अथ परा यया तदक्षरमधिगम्यते।।५।।
उस परिप्रेक्ष्य में :
अपरा विद्या के अन्तर्गत, - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष इत्यादि हैं।
और परा विद्या के अन्तर्गत ब्रह्मविद्या अर्थात् - आत्म-तत्व का विज्ञान है, जिसके उपाय / साधन से उस अक्षरब्रह्म परमात्मा को जाना जाता है।
अपरा विद्या परोक्ष-ज्ञान है, जबकि परा विद्या अपरोक्ष-बोध है।
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कविता : 21-06-2022
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योग करूँ या भोग करूँ,
या मैं करूँ, कर्म निष्काम?
सबसे पहले क्यों न करूँ,
मैं कर्ता का अनुसन्धान!
मेरे ही लिए नहीं क्या सभी,
योग, कर्म, साङ्ख्य-ज्ञान,
मैं आरम्भ, मध्य, मैं अन्त,
मैं सीमा, असीम का ज्ञान!
कौन यहाँ पर है फिर कर्ता,
यहाँ कौन सा होता कर्म,
क्या धर्म है, क्या है अधर्म,
या जिसको मैं कहूँ विधर्म!
कर्म और, क्या है अकर्म,
या दोनों से परे, विकर्म!
हाँ, कर्म की गति है गहन,
किसे पता है, इसका मर्म!
किन्तु मुझे है पता सदैव,
यही ज्ञान है, "मैं" का धर्म!
मैं ही बोध हूँ, मैं ही भान,
यही बोध है, मेरी निधि,
सत् ही चित्, चित् ही सत्,
भान ही मैं, मेरी सन्निधि!
होना है भान, भान होना,
नित्य एकमेव हैं अनन्य,
कर्ता कौन, कर्म है क्या,
क्या कर्तृत्व, क्या कर्तव्य!
यह उपाय है या अभ्यास,
यह प्रयत्न है या अनयास!
जैसे ही टूटे यदि अध्यास,
मिट जाये यह जगदाभास!!
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टिप्पणी :
यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं, कि अंग्रेजी भाषा का शब्द "Angel" -महर्षि अङ्गिरा का ही तद्भव / सज्ञात / सजात, और "Saxon" शैक्षं का ही तद्भव / सज्ञात / सजात है।
इसी प्रकार से, अंग्रेजी भाषा के Edit, और Edict, शब्दों को संस्कृत शब्दों "अधीत" तथा "अवदिष्ट" से व्युत्पन्न कहा जाना अनुचित न होगा।
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