व्याज-निर्व्याज / दुंदुभी
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समर-गीत
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कल 10-06-2022, 07:33 संध्याकाल लिखा था, किन्तु यहाँ संशोधित कर प्रस्तुत कर रहा हूँ, ताकि किसी प्रकार के संशय की संभावना न रहे।
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उस तरफ उन्माद है,
इस तरफ है अवसाद!
उस तरफ है दंभ मद,
इस तरफ परन्तु विषाद!
तो, -- कर रहा है, मृत्यु से,
नचिकेता, यह सख्य-संवाद,
"समर के पर्यवसान में,
शोक होगा, या आह्लाद!
क्या होगा परिणाम मृत्यो?!"
प्रश्न पूछा यमराज से,
यम ने कहा, "तुम जानते हो,
तुम ही कहो, अब वत्स हे!
तुम ही कहो, क्या है भविष्य,
तुम ही कहो, जो सत्य है!"
नचिकेता हँसे, फिर बोले -
"जानता हूँ, हे आचार्य!
द्विजगण हैं, अन्न उसके,
और तुम हो शाक, आर्य!
इसलिए पूछा था तुमसे,
प्रश्न मैंने, यह आचार्य!
युद्ध से भय क्या करना,
काल के हैं सभी ग्रास!
इस समर में भी मुझे तो,
लग रहा यही स्वीकार्य,
काल करे कार्य उसका,
हम करें कर्तव्य-कार्य!"
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जय महाकाल !
जय महादेव !!
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